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सूर्य॑रश्मि॒र्हरि॑केशः पु॒रस्ता॑त् सवि॒ता ज्योति॒रुद॑याँ॒२ऽअज॑स्रम्। तस्य॑ पू॒षा प्र॑स॒वे या॑ति वि॒द्वान्त्स॒म्पश्य॒न् विश्वा॒ भुव॑नानि गो॒पाः ॥५८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सूर्य॑रश्शि॒मरिति॒ सूर्य्य॑ऽरश्मिः। हरि॑केश॒ इति॒ हरि॑ऽकेशः। पु॒रस्ता॑त्। स॒वि॒ता। ज्योतिः॑। उत्। अ॒या॒न्। अज॑स्रम्। तस्य॑। पू॒षा। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। या॒ति॒। वि॒द्वान्। सं॒पश्य॒न्निति॑ स॒म्ऽपश्य॑न्। विश्वा॑। भुव॑नानि। गो॒पाः ॥५८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:58


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में सूर्य्यलोक के स्वरूप का कथन किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (पुरस्तात्) पहिले से (सविता) सूर्यलोक (ज्योतिः) प्रकाश को देता है, जिसमें (हरिकेशः) हरे रंगवाली (सूर्यरश्मिः) सूर्य्य की किरण वर्त्तमान हैं, जो (प्रसवे) उत्पन्न हुए जगत् में (अजस्रम्) निरन्तर (पूषा) पुष्टि करनेवाला है, जिसको (विद्वान्) विद्यायुक्त पुरुष (संपश्यन्) अच्छे प्रकार देखता हुआ उसकी विद्या को (याति) प्राप्त होता है, (तस्य) उसके सकाश से (गोपाः) संसार की रक्षा करनेवाले पृथिवी आदि लोक और तारागण भी (विश्वा) समस्त (भुवनानि) लोक-लोकान्तरों को (उदयान्) प्रकाशित करते हैं, वह सूर्य्यमण्डल अतिप्रकाशमय है, यह तुम जानो ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - जो यह सूर्य्यलोक है, उसके प्रकाश में श्वेत और हरी रङ्ग-विरङ्ग अनेक किरणें हैं, जो सब लोकों की रक्षा करती हैं, इसी से सब की सब प्रकार से सदा रक्षा होती है, यह जानने योग्य है ॥५८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्य्यलोकस्वरूपमाह ॥

अन्वय:

(सूर्यरश्मिः) (हरिकेशः) हरितवर्णः (पुरस्तात्) प्रथमतः (सविता) सूर्यलोकः (ज्योतिः) द्युतिम् (उत्) (अयान्) (अजस्रम्) निरन्तरम् (तस्य) (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (प्रसवे) प्रसूते जगति (याति) प्राप्नोति (विद्वान्) विद्यायुक्तः (संपश्यन्) सम्यक् प्रेक्षमाणः (विश्वा) सर्वान् (भुवनानि) लोकान् (गोपाः) पृथिव्यादयो जगद्ररक्षकाः ॥५८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यः पुरस्तात् सविता ज्योतिः प्रयच्छति, यस्मिन् हरिकेशः सूर्यरश्मिर्वर्तते, यः प्रसवेऽजस्रं पूषाऽस्ति, यं विद्वान् संपश्यन् सन् तद्विद्यां याति, तस्य सकाशाद् गोपा विश्वा भुवनान्युदयान्, स सूर्यमण्डलोऽतिप्रकाशमय इति यूयं वित्त ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - योऽयं सूर्यलोकस्तत्प्रकाशे शुक्लहरितादयोऽनेके किरणाः सन्ति, ये सर्वाँल्लोकानभिरक्षन्ति। अत एव सर्वस्य सर्वदा सर्वथा रक्षणं भवतीति वेद्यम् ॥५८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सूर्याच्या प्रकाशकिरणात रंगीबेरंगी श्वेत, हरित इत्यादी अनेक रंगांची किरणे आहेत. सर्व लोकांचे (ग्रहगोल इत्यादींचे) त्यामुळेच सर्व प्रकारे रक्षण होते हे सर्वांनी जाणले पाहिजे.